इराक की 18 साल पुरानी तस्वीर एडिट कर अफ़ग़ानिस्तान का बताया

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  • प्रकाशित 26 अगस्त 2021, 11h46
  • 3 मिनट
  • द्वारा एफप भारत
कई फ़ेसबुक और ट्विटर यूज़र्स ने जंज़ीर से बंधी कुछ महिलाओं की तस्वीर शेयर करते हुए दावा किया कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का कब्ज़ा होने के बाद वहां पर महिलाओं को बेचा जा रहा है. यह अफ़ग़ानिस्तान नहीं बल्कि 2003 में इराक में खींची गई तस्वीर है जिसमे जंजीर को एडिट कर जोड़ा गया है.

ये भ्रामक पोस्ट फ़ेसबुक पर यहां 19 अगस्त, 2021 को किया गया जिसे सैंकड़ों बार शेयर किया जा चुका है.

तस्वीर में जंज़ीर से बंधी बुर्क़ा पहनीं तीन महिलाएं हैं जिनके आगे-आगे एक आदमी चल रहा है.

इसके कैप्शन में लिखा है, "कहते है #कर्म_का_नियम_अटल_है कभी इसी अफगानिस्तान की धरती पर महमूद गज़नवी ने हिन्दू बेटियों को बेचा था , #दुख्तरे_हिन्द ...#दो_दीनार.... आज वही मुस्लिम लड़कियों को कौड़ियों के भाव बेचा और लुटा जा रहा है ये है अमन के मसीहा..... #इतिहास_खुद_को_दोहराता_है"

मेहमूद 11वीं शताब्दी में अफ़ग़ानिस्तान के ग़ज़नी प्रान्त का शासक था.

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भ्रामक पोस्ट का स्क्रीनशॉट ( Uzair RIZVI)

बता दें कि 15 अगस्त, 2021 को तालिबान ने अमेरिकी समर्थन प्राप्त अफ़ग़ान सरकार को सत्ता से हटाते हुए अफ़ग़ानिस्तान पर एक बार फिर कब्ज़ा कर लिया. इसपर AFP की रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं. इसी घटनाक्रम के बीच ये तस्वीर शेयर की जाने लगी.

ये तस्वीर फ़ेसबुक पर भी यहां और यहां; और ट्विटर पर यहां और यहां एक जैसे दावों के साथ शेयर की गयी.

लेकिन ये तस्वीर एडिट की हुई है.

इस तस्वीर का रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमने ये यहां मिली जिसे 2006 में ही अपलोड किया गया था. लेकिन इस तस्वीर में महिलाएं जंज़ीर से बंधी हुई नहीं दिख रही हैं.

इसके कैप्शन में बताया गया है, "ये तस्वीर बगदाद में ली गयी थी. ये आदमी और इसकी पत्नियां सिटी सेंटर जा रहे हैं."

नीचे भ्रामक पोस्ट की तस्वीर (बाएं) और ओरिजिनल तस्वीर (दाएं) के बीच तुलना देख सकते हैं.

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एडिट की हुई तस्वीर और ओरिजिनल तस्वीर के बीच तुलना ( Uzair RIZVI)

इस वेबसाइट के मुताबिक ये तस्वीर मूरत दूज़ियोल ने 2003 में ली थी.

AFP ने इस्तानबुल के मूरत दूज़ियोल से बात की और उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की कि ये तस्वीर उन्होंने 2003 में इराक में खींची थी, जिसे अब एडिट कर शेयर किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, "आपने जिस तस्वीर की बात की वो मैंने ही 2003 में इराक में खींची थी. उत्तरी इराक के शहर एरबिल में जुम्मे की नमाज़ के बाद मारे गए इराकी नागरिकों के लिए एक शोक सभा आयोजित की गयी थी. लोग वहीं से वापस लौट रहे थे और अचानक से ये फ्रेम में आया. ये बिना किसी तैयारी के ली गयी तस्वीर थी. ये औरतें तो एक दूसरे को जानती ही होंगी, पता नहीं उस आदमी को जानती थी या नहीं."

उन्होंने आगे कहा, "दुर्भाग्य से मेरी ली गयी कई तस्वीरों से छेड़छाड़ की जा चुकी है. लेकिन ये तस्वीर सोशल मीडिया पर सबसे ज़यादा वायरल हुई. मैंने पहले भी लोगों को इसके ख़िलाफ़ चेतावनी दी है लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा."

उन्होंने AFP के साथ ओरिजिनल तस्वीर भी शेयर की. तस्वीर का EXIF डेटा देखने पर भी पता चला कि इसे 28 फ़रवरी, 2003 को लिया गया था.

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( Uzair RIZVI)

बता दें कि अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानी कब्ज़े के बाद कई ऐसे दावें सोशल मीडिया पर वायरल हो रहें है. AFP ने इससे पहले ऐसे ही एक महिलाओं की नीलामी से जुड़े दावे को फैक्टचेक किया था जिसे यहां पढ़ा जा सकता है.

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