तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर सैन्य अधिकार के बाद 23 अगस्त, 2021 को काबुल के एक बाज़ार इलाके में खरीदारी करती महिलाएं ( AFP / )

जंज़ीर से बंधी महिलाओं की ये तस्वीर अफ़ग़ानिस्तान की नहीं है

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  • प्रकाशित 2 सितम्बर 2021, 12h16
  • 2 मिनट
  • द्वारा एफप भारत
जंज़ीर से बंधी महिलाओं की एक तस्वीर सोशल मीडिया यूज़र्स इस दावे के साथ शेयर कर रहे हैं कि यह तालिबान के शासन की तस्वीर है. तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किये जाने के बाद मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों, ख़ासकर महिलाओं की चिंता बढ़ गयी है. लेकिन तस्वीर के साथ ये दावा ग़लत है: इसमें लेबनॉन में महिलाएं पैगम्बर मोहम्मद के पोते की बर्सी मनाते हुए एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रही हैं.

23 अगस्त को किये गए एक फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा गया, "पहली फ़ोटो तालिबान के शरिया राज की है. और दूसरी फ़ोटो भारत के भगवा राज की है. गर्व करें अपने हिन्दू होने पर." 

इस पोस्ट में दो तस्वीरों की तुलना की गयी है. पहली तस्वीर में बुर्क़ा पहनीं महिलाएं जंज़ीर से बंधीं हुई हैं और दूसरी में कुछ लड़कियां भारतीय लिबास पहने खाना खा रही हैं.

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भ्रामक पोस्ट का स्क्रीनशॉट

ऐसे ही पोस्ट फ़ेसबुक पर यहां, यहां और यहां किये गए; और ट्विटर पर यहां और यहां किये गए. 

तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किये जाने के बाद मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों, ख़ासकर महिलाओं की चिंता बढ़ गयी है. इसी के बाद से ऐसे पोस्ट लगातार शेयर किये जा रहे हैं.

तालिबान ने जब इससे पहले अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा किया था तब उसने कट्टर इस्लामिक नियम अपनाते हुए महिलाओं के सार्वजानिक जीवन, मनोरंजन जैसी चीज़ों पर बैन लगा दिया था और नाजायज़ सम्बन्ध बनाने पर अमानवीय सज़ा देने वाले नियम लागू किये थे.

तालिबान ने इस बार महिला अधिकारों का ध्यान रखने का वादा किया है, लेकिन ये अधिकार भी शरिया, यानि इस्लामिक कानून के तहत ही दिए जायेंगे.

लेकिन जंज़ीर से बंधी महिलाओं की तस्वीर तालिबान शासित अफ़ग़ानिस्तान की नहीं है.

टिनआय पर इसका रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें यही तस्वीर रॉयटर्स न्यूज़ एजेंसी के आर्काइव में मिली.

इसके कैप्शन के मुताबिक ये तस्वीर 4 दिसंबर, 2011 को लेबनॉन में ली गयी थी.

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रॉयटर्स पर मिली तस्वीर का स्क्रीनशॉट

कैप्शन में लिखा है, "दक्षिणी लेबनॉन के सकसाकीह में आशूरा मनाने से दो दिन पहले शिया द्वारा कर्बला के युद्ध पर शोक जुलुस के दौरान जंज़ीर में एक दूसरी से बंधी हुईं, 4 दिसंबर, 2011."

"शिया मुस्लिम के लिए आशूरा सबसे बड़ा दिन होता है. इस दिन पैगंम्बर मोहम्मद के पोते इमाम हुसैन की मौत का शोक मनाया जाता है. उनकी सातवीं शताब्दी में कर्बला युद्ध में मौत हुई थी. रॉयटर्स/अली हाशिशो."

दूसरी तस्वीर 'कन्या पूजन' की है जो हिन्दू पर्व नवरात्रि के आख़िरी दिन मनाया जाता है. ये तस्वीर ज़ी न्यूज़ ने छापी थी.

महिलाओं की कुछ ऐसी ही तस्वीरें पहले भी यहां और यहां शेयर करते हुए दावा किया गया था कि ये अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े की बाद की तस्वीरें हैं.

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