
बेंगलुरू में नगर निगम द्वारा गैर-कन्नड़ भाषी बोर्ड हटाने का वीडियो साम्प्रदायिक दावे से शेयर किया गया
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- प्रकाशित 12 मार्च 2024, 18h08
- 3 मिनट
- द्वारा Devesh MISHRA, एफप भारत
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वीडियो को फ़ेसबुक पर यहां 26 फ़रवरी 2024 को शेयर किया गया है.
पोस्ट का कैप्शन है, "अगर आप कटवा पार्टी कांग्रेस को वोट करेंगे तो आप अपनी दूकान घर मोहल्ला मन्दिर इत्यादी जगह पर भगवा रंग का उपयोग नही कर सकते कर्नाटक *देख लिजिये हिन्दूओं इन मुस्लिमों का आर्थिक बहिष्कार करो अर्थात इनसे समान खरीदना बंद करो! जागो भाईयों जागो कही देर ना हो जाए राष्ट्रहित सर्वोपरि जय श्री राम."
एक-मिनट, 42-सेकेंड के इस वीडियो में कुछ लोग एक लम्बे डंडे से दुकानों के साइनबोर्ड तोड़ रहे हैं.

वीडियो को इसी दावे के साथ फ़ेसबुक पर यहां, यहां और X पर यहां शेयर किया गया है.
हालांकि साइनबोर्ड्स को उनके रंग की वजह से नहीं बल्कि सरकारी आदेश के बादजूद डिस्प्ले में कन्नड़ भाषा को शामिल न करने की वजह से तोड़ा गया था.
कन्नड़ भाषा की अनिवार्यता
वीडियो के कीफ़्रेम को गूगल रिवर्स इमेज सर्च करने पर 23 फ़रवरी को यहां इंडिया टुडे के वेरिफ़ाइड यूट्यूब चैनल पर अपलोड की गई एक क्लिप मिली (आर्काइव्ड लिंक).
वीडियो क्लिप की हेडलाइन है, "बेंगलुरु में भाषा युद्ध: बीबीएमपी ने समय सीमा से पहले अंग्रेज़ी साइनबोर्डों पर कार्रवाई की."
नीचे गलत दावे की पोस्ट में शेयर किये गए वीडियो (बाएं) और इंडिया टुडे रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई क्लिप (दाएं) के स्क्रीनशॉट की तुलना दी गई है.

रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु की नगर परिषद बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) ने 28 फ़रवरी की समय सीमा से पहले ही अंग्रेज़ी साइनबोर्ड वाले दुकानदारों के खिलाफ़ कार्रवाई की थी.
रिपोर्ट में बीबीएमपी द्वारा जारी एक आदेश का ज़िक्र है जिसके अनुसार सभी दुकानों के साइनबोर्ड 60 प्रतिशत कन्नड़ भाषा में लिखे जाने चाहिए.
मीडिया आउटलेट मिंट के अनुसार कई स्थानीय समूहों ने बीबीएमपी के इस आदेश के तत्काल कार्यान्वयन की मांग को लेकर दिसंबर 2023 में बेंगलुरु भर में प्रदर्शन किया था (आर्काइव्ड लिंक)
मिंट की रिपोर्ट में कहा गया है, "बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के मुख्य आयुक्त तुषार गिरि नाथ ने कहा कि दुकानों के सामने कन्नड़ नेमप्लेट नहीं लगाने वालों के खिलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी."
अन्य मीडिया रिपोर्ट्स में भी यहां और यहां समय सीमा से पहले अधिकारियों द्वारा कार्रवाई करने की रिपोर्ट की गई है (आर्काइव्ड लिंक यहां, यहां).
अन्य दुकानों के साइनबोर्ड तोड़ने के वीडियो भी X पर यहां, इंस्टाग्राम पर यहां और यूट्यूब पर यहां पर शेयर किए गए हैं (आर्काइव्ड लिंक यहां, यहां और यहां).
कोई साम्प्रदायिक वजह नहीं
वीडियो में भगवा रंग के बोर्ड वाली दुकान के मालिक मंजूनाथ राव ने एएफ़पी को बताया कि सरकारी आदेश का पालन नहीं करने के कारण उनकी दुकान का साइन हटाया गया था.
राव ने 1 मार्च को बताया, "हमें बीबीएमपी ने पहले ही निर्देश दिया था कि दुकान के डिस्प्ले पर लिखा नाम 60 प्रतिशत कन्नड़ भाषा में होना चाहिए. हमने एक नए साइनबोर्ड का ऑर्डर दिया था, लेकिन वे (अधिकारी) आए और पहले ही साइनबोर्ड तोड़ दिया."
उन्होंने कहा, "इसमें किसी भी तरह का धार्मिक एंगल नहीं है."
नगर परिषद के एक प्रवक्ता ने भी एएफ़पी को बताया कि यह दावा गलत है, और केवल कन्नड़ भाषा की अनिवार्यता का पालन नहीं करने वाले बोर्ड्स को हटाया गया था.
उन्होंने कहा, "प्रत्येक दुकानदार और मालिक को साइनबोर्ड बदलने के लिए पहले ही एक आदेश जारी किया गया था. इसका रंग या धर्म से कोई लेना-देना नहीं है."
एएफ़पी ने पहले भी सांप्रदायिक दावे की गलत सूचनाओं को यहां, यहां और यहां फ़ैक्ट-चेक किया है.
