बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिर के पुजारी की हत्या के दावे से वायरल तस्वीर भारत से है
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- प्रकाशित 11 नवंबर 2021, 13h53
- 3 मिनट
- द्वारा एफप भारत
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इस तस्वीर को यहां ट्विटर पर 19 अक्टूबर, 2021, को शेयर किया गया है.
ट्वीट के साथ कैप्शन में लिखा है: "सांप को दूध पिलाना कहावत सुनी होगी आपने... अब देख लीजिए... ये है इस्कॉन मंदिर के स्वामी निताई दास रमजान में रोजा इफ्तारी करवाते हुए... बांग्लादेश मे कल इनकी भी हत्या कर दी गयी है".
इस्कॉन हिंदू धर्म से जुड़ा एक संगठन है जो कृष्ण भक्ति पर आधारित है. ये हरे कृष्ण आन्दोलन से नाम से भी जाना जाता है.
वायरल तस्वीर में एक पुजारी को कुछ मुस्लिम समुदाय के लोगो को खाना परोसते हुए देखा जा सकता है.
अक्टूबर में दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में हुई हिंसा के बाद से ही इस पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर किया जाने लगा.
बांग्लादेश के नोआखाली ज़िले के दक्षिण स्थित बेगमगंज में उपद्रवियों द्वारा एक मंदिर में तोड़फोड़ और हिंसा की गई थी जिसमें हिंदू समुदाय के दो लोगों की मृत्यु हुई थी.
इस तस्वीर को बिल्कुल इसी दावे के साथ फ़ेसबुक पर यहां, यहां और ट्विटर पर यहां, यहां, यहां शेयर किया गया है.
ये दावा भ्रामक है.
कीवर्ड सर्च की मदद के एक गूगल रिवर्स इमेज सर्च किया तो पाया कि ये तस्वीर पुरानी है. 4 जुलाई 2016 को यूसीए न्यूज़ की एक खबर में इस तस्वीर का प्रयोग किया गया था. ख़बर की हेडलाइन थी: “हिंदू समुदाय के लोगों ने मुस्लिमों के रोज़ा इफ्तार का इंतज़ाम किया.”
ख़बर के मुताबिक़ कोलकाता के इस्कॉन मंदिर में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.
भ्रामक पोस्ट (बायें) और आर्टिकल में प्रयोग तस्वीर (दायें) के बीच एक तुलना दी गई है:
इस्कॉन के भारत में राष्ट्रीय प्रवक्ता युधिष्ठिर गोविंद दास ने AFP को बताया कि ये तस्वीर पश्चिम बंगाल में ली गई है.
दास ने तस्वीर में दिख रहे इस्कॉन के पुजारी की पहचान क्रोएशिया के इवान एन्टिक के रूप में की. उन्हें चैतन्य निताई दास के नाम से भी जाना जाता है.
गोविन्द दास के कहा कि, "हाल ही में बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों में हुई हिंसा में मारे गये इस्कॉन के दो सदस्यों में निताई दास नहीं हैं."
AFP ने इवान एन्टिक से भी संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वायरल फ़ोटो दरअसल उन्हीं की है.
17 अक्टूबर को इस्कॉन ने एक बयान जारी कर बांग्लादेश हिंसा में मारे गये अपने दो सदस्यों की पहचान प्रान्ता चन्द्र दास और जतन चन्द्र साहा के रूप में की.
इस बयान में कहीं भी स्वामी निताई दास का कोई ज़िक्र नहीं था.