कर्नाटक उच्च न्यायलय ने हिजाब मुद्दे से जुड़े किसी भी वक़ील की लइसेंस रद्द नहीं की
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- प्रकाशित 19 अप्रैल 2022, 17h39
- 3 मिनट
- द्वारा एफप भारत
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वीडियो को यहां फेसबुक पर 21 मार्च, 2022 को शेयर किया गया है जहां इसे अब तक 13,000 बार से भी अधिक देखा जा चुका है.
पोस्ट के कैप्शन के एक हिस्से में लिखा है, "कर्नाटका हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने हिजाब को लेकर पुनः याचिका लगाने वाले वक़ील को डाटते हुए आगे से प्रैक्टिस करने पर बैन लगा दिया, नोटिस भी जारी किया."
कर्नाटक के एक स्थानीय स्कूल में हिजाब बैन करने के फैसले के बाद इलाके में सांप्रदायिक तनाव की स्तिथि बन गई थी.
हफ्तों के विचार-विमर्श के बाद, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि हिजाब पहनना "इस्लामी आस्था में आवश्यक धार्मिक अभ्यास का हिस्सा नहीं है". AFP की रिपोर्ट देखें.
पोस्ट को इसी दावे से फेसबुक पर यहां और यहां शेयर किया गया है.
हालांकि दावा गलत है.
राज्य में कानून की प्रथा को नियंत्रित करने वाली संवैधानिक संस्था कर्नाटक राज्य बार काउंसिल के अध्यक्ष मोटकपल्ली काशीनाथ ने AFP से बताया कि, "हिजाब मामले से संबंधित किसी भी वक़ील को निलंबित नहीं किया गया था, अदालत या बार एसोसिएशन ने उसका लाइसेंस भी नहीं छीना था."
कुछ कीवर्ड्स के साथ विडियो को रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें इसका एक लंबा हिस्सा कर्नाटक हाईकोर्ट के अधिकारिक यूट्यूब चैनल पर यहां 3 मार्च, 2022 को अपलोड मिला.
यूट्यूब वीडियो में हाईकोर्ट की पूरी सुनवाई सुनने पर इसमें "हिजाब मामले" का कोई भी जिक्र नहीं मिलता बल्कि अदालत एक किसी वित्तीय मामले पर बहस कर रही थी.
इस क्लिप में एक न्यायाधीश को एक वक़ील को कथित रूप से अदालत में मामले से संबंधित जानकारी का खुलासा नहीं करने के लिए फटकार लगाते हुए दिखाया गया है. यहां और यहां अदालत के दस्तावेज बताते हैं कि वकील से उसका लाइसेंस नहीं छीना गया था.
नीचे 4 मार्च, 2022 को प्रकाशित उस फैसले का स्क्रीनशॉट है, जिसमें साफ़ पढ़ा जा सकता है कि वकील को बिना किसी कार्यवाही के छोड़ दिया गया था.
इस वीडियो को 3 मार्च 2022 को लाइव स्ट्रीम किया गया था जो हिजाब मामले में फैसला सुनाए जाने से पहले का है.
नीचे भ्रामक पोस्ट (बाएं) और यूट्यूब वीडियो (दाएं) के स्क्रीनशॉट के बीच एक तुलना है.
ज्ञात हो कि हिजाब मामले की सुनवाई तीन जजों, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित, मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी और न्यायमूर्ति जे एम खाजी ने की थी. जबकि इस मामले में केवल दो न्यायाधीश ही बेंच पर दिखाई दे रहे हैं.