ये तस्वीर हल्द्वानी नहीं बल्कि कोलकाता में बसे झुग्गियों की है
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- प्रकाशित 27 जनवरी 2023, 06h45
- 2 मिनट
- द्वारा Anuradha PRASAD, एफप भारत
- अनुवाद और अनुकूलन Anuradha PRASAD
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भाजपा सदस्य प्रीति गांधी ने 5 जनवरी को एक तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने आज इसे वैधता दी है #हल्द्वानीअतिक्रमण.” मालूम हो की उनके पांच लाख से ज़्यादा ट्विटर फ़ॉलोवर्स हैं.
इस ट्वीट को 17,000 से ज़्यादा लोग लाइक कर चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी को उत्तराखंड हाई कोर्ट के हल्द्वानी रेलवे लाइन के पास 4,000 से ज़्यादा मकानों को तोड़ने के फ़ैसले पर रोक लगाया था. रेलवे प्रशासन के मुताबिक ये मकान रेल विभाग के हैं न कि लोगो के. इसपर अगली सुनवाई फ़रवरी में होनी है.
रेल प्रशासन का कहना है कि उस जगह के सर्वे और अन्य रिकॉर्ड बताते हैं कि ये ज़मीन प्रशासन की है. वहीं ज़मीन के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि लोग वहां दशकों से रह रहे हैं और इस फ़ैसले से 50,000 से ज़्यादा लोग प्रभावित होंगे.
लोगों को एक हफ़्ते की नोटिस मिलने के बाद हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को ये फ़ैसला सुनाया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि “सात दिनों के भीतर 50,000 लोगों को उजाड़ा नहीं जा सकता है.”
ये तस्वीर फ़ेसबुक पर यहां और यहां और ट्विटर पर यहां इसी सन्दर्भ में शेयर की गयी.
पुरानी तस्वीर
ये तस्वीर असल में फ़ोटो एजेंसी गेटी इमेजेज़ पर 12 दिसंबर, 2013 को पब्लिश की गयी थी.
इसे समीर हुसैन ने खींची है और इंग्लिश में लिखे कैप्शन का हिंदी अनुवाद है, “कोलकाता के झुग्गी और बेघर.”
आगे लिखा है, “कोलकाता, भारत-दिसंबर 12: भारत के कोलकाता में 12 दिसंबर, 2013 को रेलवे लाइन पर झुग्गी के लोग अपना दिन बिताते हुए जहां से लोकल ट्रेन गुज़रती है. कोलकाता की करीब एक तिहाई जनता झुग्गियों में रहती है और अन्य 70,000 बेघर हैं. (समीर हुसैन की तस्वीर/गेटी इमेजेज़).”
नीचे भ्रामक पोस्ट की तस्वीर (बाएं) और गेटी की तस्वीर (दाएं) के बीच तुलना देख सकते हैं:
सर्च इंजन टिनआय पर रिवर्स सर्च करने पर ये तस्वीर ABC न्यूज़ के 2016 के एक आर्टिकल में भी मिली. इस रिपोर्ट में दुनियाभर में आय की असामनता पर बात की गयी है.