बालासोर ट्रेन हादसे के बाद सोशल मीडिया पर शेयर किया गया ये गलत साम्प्रदायिक दावा

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  • प्रकाशित 7 जून 2023, 14h16
  • 3 मिनट
  • द्वारा Devesh MISHRA, एफप भारत
हालिया बालासोर रेल त्रासदी भारत की सबसे भीषण रेल दुर्घटनाओं में से एक है. इस भीषण दुर्घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया पोस्ट्स पर इस त्रासदी के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए ये गलत दावा शेयर किया जाने लगा कि ड्रोन कैमरे से ली गई तस्वीर में दुर्घटनास्थल के पास एक मस्जिद दिखाई देती है. हालांकि ओडिशा स्थित दुर्घटना स्थल पर मौजूद एएफ़पी के एक पत्रकार ने पाया कि पोस्ट में हाइलाइट की जा रही सफ़ेद रंग की बिल्डिंग वास्तव में एक इस्कॉन मंदिर है. स्थानीय पुलिस ने कहा है कि वे दुर्घटना के कारणों की जांच कर रहे हैं, लेकिन इस घटना में किसी भी तरह के सांप्रदायिक एंगल को खारिज करते हुए ऐसे दावों को फैलाने वालों के खिलाफ़ "गंभीर कानूनी कार्रवाई" की चेतावनी भी दी है.

तस्वीर को एक फ़ेसबुक पेज पर 4 जून को शेयर किया गया है जिसे लगभग 39000 लोग फ़ॉलो करते हैं.

तस्वीर में ट्रेन दुर्घटनास्थल - जिसमें लगभग 300 लोग मारे गये हैं - के साथ हरे रंग के घेरे में एक सफ़ेद इमारत भी देखी जा सकती है.

पोस्ट के कैप्शन के एक हिस्से में लिखा है, “बालासोर ट्रेन हादसे का शुक्रवार कनेक्शन क्या है? ये भी कहा जा रहा है कि जहां ये हादसा हुआ, वहां पास में ही मस्जिद नुमा ढांचा है। इस एंगल से भी जांच हो??

बालासोर में जो हुआ वो ट्रेन हादसा है या आतंकी साजिश? ये हादसा शुक्रवार को हुआ है, इस एंगल से भी जांच हो.”

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गलत दावे से शेयर की गई फ़ेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट, 5 जून 2023

इस दुर्घटना को मुसलमानों से जोड़कर शेयर की गई एक ट्विटर पोस्ट (अब डिलीट हो चुकी) को 2000 से अधिक बार शेयर किया गया है. साथ ही अन्य पोस्ट्स को फ़ेसबुक पर यहां, यहां और ट्विटर पर यहां शेयर किया गया है.

एएफ़पी की 5 जून की रिपोर्ट के अनुसार रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि यह दुर्घटना "इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग के दौरान हुए बदलाव" के कारण हुई है (आर्काइव लिंक).

यह ट्रेनों के लिये बनाया गया एक सिग्नल सिस्टम है जिसे पटरियों पर ट्रेनों के मूवमेंट्स की व्यवस्था करके ट्रेनों को टकराने से रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

वैष्णव ने कहा, "हमने दुर्घटना के कारणों और इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों की पहचान कर ली है, लेकिन अंतिम जांच रिपोर्ट पूरी होने से पहले यह विवरण देना उचित नहीं है.”

इस्कॉन मंदिर

हालांकि सोशल मीडिया पर ऑनलाइन शेयर की जा रही तस्वीर में घेरे में दिख रही सफ़ेद बिल्डिंग मस्जिद नहीं है, जैसा कि पोस्ट में दावा किया गया है.

बालासोर में ट्रेन दुर्घटना को कवर करने वाले एएफ़पी के एक पत्रकार ने पाया कि यह वास्तव में हिंदू धार्मिक संप्रदाय से संबंधित एक मंदिर है जिसे इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) कहा जाता है. इसे हरे कृष्ण आंदोलन के रूप में भी जाना जाता है (आर्काइव लिंक).

नीचे बालासोर के बहनागा ज़िले में एएफ़पी द्वारा ली गई मंदिर की तस्वीरें और छत से लिया गया दुर्घटनास्थल का दृश्य है:

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मंदिर के पुजारी बृज शरण दास ने एएफ़पी को बताया कि दुर्घटना 2 जून को मंदिर के पास ही हुई थी.

उन्होंने कहा, "यह बहुत दुखद हादसा है लेकिन इससे भी ज़्यादा दुख की बात यह है कि कुछ लोग इस्कॉन मंदिर की तस्वीर को सांप्रदायिक दावे के साथ मस्जिद बताकर सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं जो बिल्कुल गलत है.”

बहानागा इस्कॉन मंदिर को यहां गूगल मैप्स पर देखा जा सकता है (आर्काइव लिंक).

नीचे गलत दावे की पोस्ट (बायें) और गूगल मैप्स सेटेलाइट इमेजरी (दायें) में मंदिर और आस-पास के रेल रोड के स्क्रीनशॉट्स की तुलना दी गयी है. एएफ़पी ने दोनों में समानताओं को हाईलाइट किया है:

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ओडिशा पुलिस ने भी 4 जून को ट्विटर पर इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि इसे शेयर करने वाले लोगों के खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

ट्वीट में लिखा है: "यह ध्यान में लाया गया है कि कुछ सोशल मीडिया हैंडल शरारतपूर्ण तरीके से बालासोर में हुए दुखद ट्रेन हादसे को सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. जीआरपी, ओडिशा द्वारा दुर्घटना के कारण और अन्य सभी पहलुओं की जांच की जा रही है."

"हम सभी संबंधित लोगों से अपील करते हैं कि वे इस तरह के गलत और दुर्भावनापूर्ण पोस्ट शेयर करने से बचें. अफ़वाहें फैलाकर सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ़ कड़ी कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी."

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