झारखंड पुलिस की मॉक ड्रिल का पुराना वीडियो मध्य प्रदेश का बताकर शेयर किया गया

मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया ज़ोर शोर से चल रही है जिनकी मतगणना 3 दिसंबर को होनी है. मध्य प्रदेश में वोटिंग होने के बाद से ही सोशल मीडिया पोस्ट्स पर एक वीडियो सैकड़ों बार इस गलत दावे से शेयर किया गया है कि यह 2017 में मंदसौर में किसानों पर हुए पुलिस फायरिंग को दिखाता है. हालांकि यह वीडियो झारखंड में एक पुलिस मॉक ड्रिल के दौरान फ़िल्माया गया था.

वीडियो को फ़ेसबुक पर यहां 11 नवंबर को शेयर किया गया है.

पोस्ट के कैप्शन में लिखा है, “2016 में अपनी उपज का सही दाम मांग रहे किसानों के ऊपर शिवराज सरकार ने मंदसौर में 6 किसानों को गोली मारी थी यही सरकार अब किसान हितेशी बन रही है.”

वीडियो के उपर टेक्स्ट में लिखा है, “मंदसौर गोली कांड: ऐसे मारा था शिवराज ने किसानों को गोली से.”

लगभग 30-सेकंड के इस वीडियो में बंदूक ताने दो पुलिसकर्मी नज़र आते हैं. वो प्रदर्शनकारियों के एक समूह पर गोली चलाते हैं. जैसे ही कुछ प्रदर्शनकारी ज़मीन पर गिरते हैं, उन्हें फ़ौरन स्ट्रेचर पर लाद कर ले जाया जाता है जिसके तुरंत बाद डंडों से लैस अर्धसैनिक बल के जवान प्रदर्शनकारियों की ओर मार्च करना शुरू कर देते हैं. वीडियो को 100 से अधिक बार देखा जा चुका है.

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गलत दावे से शेयर की गई पोस्ट का स्क्रीनशॉट, 22 नवंबर 2023

मध्य प्रदेश के मंदसौैर ज़िले में जून 2017 में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच एक झड़प के दौरान तब कम से कम पांच लोग मारे गए थे जब किसानों ने अधिकारियों से अपनी फसलों की न्यूनतम कीमत बढ़ाने और कर्ज़ माफ़ी की मांग को लेकर एक रैली निकाली थी. प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस पर पत्थर फेंकने और वाहनों में आग लगाने के बाद अधिकारियों ने भीड़ पर गोलियां चला दी थीं.

राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त एक आयोग ने 2018 में पुलिस को क्लीन चिट देते हुए कहा कि अधिकारियों को गोलियां चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उन पर डंडों और पेट्रोल बमों से लैस भीड़ ने हमला किया था (आर्काइव्ड लिंक).

वीडियो को इसी दावे के साथ फ़ेसबुक पर यहां, यहां और X, पूर्व में ट्विटर, पर यहां शेयर किया गया है.

हालांकि यह दावा गलत है. वीडियो 2017 में झारखंड में एक पुलिस मॉक ड्रिल दिखाता है.

पुलिस मॉक ड्रिल

एएफ़पी ने 2020 में इस वीडियो का फ़ैक्ट-चेक किया है जब इसे एक अन्य गलत दावे के साथ शेयर किया गया था.

कुछ कीवर्ड के साथ वीडियो के कीफ़्रेम्स को गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च करने पर 2 नवंबर, 2017 को यूट्यूब पर अपलोड किए गए इस वीडियो का एक लंबा संस्करण मिला (आर्काइव्ड लिंक).

वीडियो की हेडलाइन में लिखा है: "खूंटी पुलिस का मॉक ड्रिल."

वीडियो के अंत में एक पुलिस अधिकारी को घोषणा करते हुए सुना जा सकता है: "ये केवल एक डेमो था जिसमें खूंटी पुलिस ने अपनी सक्रियता दिखाई कि किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने के लिए हमारी पुलिस हमेशा तत्पर और तैयार है."

स्थानीय फ़्रीलांस पत्रकार आनंद दत्ता ने पहले एएफ़पी को बताया था कि यह ड्रिल खूंटी शहर के मुख्य चौराहे के पास 2017 में दिवाली के समय आयोजित की गई थी.

उन्होंने एएफ़पी को बताया, "वीडियो में दिख रही सड़क खूंटी शहर के मुख्य चौराहे की है."

दत्ता ने व्हाट्सएप पर एएफ़पी को उस सड़क की तस्वीरें भी भेजीं जहां ड्रिल आयोजित की गई थी.

नीचे दत्ता द्वारा भेजी गई तस्वीरों के कोलाज (बाएं) और 2020 में गलत दावे की पोस्ट में शेयर किये गये वीडियो (दाएं) के स्क्रीनशॉट की तुलना है, जिसमें मिलती जुलती समानताओ को हरे और लाल रंग में हाइलाइट किया गया है.

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एक अलग एंगल से शूट की गई उसी मॉक ड्रिल की 2:35 सेकेंड की क्लिप को 4 नवंबर, 2017 को यूट्यूब पर अपलोड किया गया था.

वीडियो की हेडलाइन है: "झारखंड पुलिस खूंटी (प्रशिक्षण का हिस्सा) रिहर्सल" (आर्काइव्ड लिंक).

क्लिप के साथ कैप्शन में लिखा है: "खूंटी में पुलिस के लिए रिहर्सल में हम सभी पुलिसकर्मी कस्बों और अन्य स्थानों पर भीड़ पर कैसे नियंत्रण करते हैं. (यह केवल और केवल रिहर्सल है)."

गूगल स्ट्रीट व्यू पर मौजूद तस्वीरों से भी यह स्पष्ट होता है कि वीडियो खूंटी में ही फ़िल्माया गया है (आर्काइव्ड लिंक).

नीचे 2017 के यूट्यूब वीडियो (बाएं) और गूगल स्ट्रीट व्यू (दाएं) के एक स्क्रीनशॉट की तुलना है, जिसमें एएफ़पी द्वारा समानताएं हाइलाइट की गई हैं.

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