सिलक्यारा सुरंग में फंसे बूढ़े मज़दूर के दावे से शेयर की जा रही इस तस्वीर का सच क्या है?

उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग 41 मज़दूरों को 17 दिनों के मैराथन बचाव अभियान के बाद 28 नवंबर को सुरक्षित निकाल लिया गया. इसी बीच सोशल मीडिया पोस्ट्स पर पीले रंग की हेलमेट पहने एक बूढ़े व्यक्ति की तस्वीर को इस गलत दावे से सैकड़ों बार शेयर किया गया है कि यह सुरंग में फंसे एक मज़दूर को दिखाती है. हालांकि रेस्क्यू अभियान में शामिल अधिकारियों के अनुसार यह तस्वीर सुरंग के फंसे किसी भी मज़दूर की नहीं है. यह तस्वीर कम से कम मई 2019 से सोशल मीडिया पर शेयर हो रही है.

तस्वीर को X, पूर्व में ट्विटर, पर यहां 26 नवंबर को भारत के ऐतिहासिक चन्द्रयान मिशन से जोड़कर शेयर किया गया है.

पोस्ट का कैप्शन है, “यदि हम 15 दिनों तक सुरंग में फंसे मजदूरों तक नहीं पहुंच सकते तो, चांद पर पहुंचने से क्या फ़ायदा, हम ऐसी परिस्थितियों के लिये कभी तैयार नहीं रहते."

कैप्शन के साथ उत्तराखंड टनल रेस्क्यू और उत्तराखंड टनल जैसे हैशटैग्स भी हैं.

पोस्ट में शेयर की गई तस्वीर में एक बुज़ुर्ग व्यक्ति बेहद कमज़ोर अवस्था में पीले रंग की माइनर्स हेलमेट और हेडलैम्प पहने हुए बैठा दिखाई दे रहा है.

उत्तराखंड के सिल्कयारा में 12 नवंबर को एक सड़क सुरंग निर्माण कार्य के दौरान ढह गई, जिससे 41 मज़दूर अंदर फंस गए.

मज़दूरों को बाहर निकालने के लिये शुरु हुआ बचाव अभियान कई बार असफ़ल हुआ, जिसमें आगे मलबा गिरने की आशंका और मलबे में फंसे धातु के गर्डरों से टकराकर ड्रिलिंग मशीनों के बार-बार खराब होने की आशंका की वजह से बचाव कार्य में देरी हुई.

बचावकर्ताओं द्वारा एक पतली पाइप के माध्यम से भेजे गए एंडोस्कोपिक कैमरे के लेंस में झांकते हुए मज़दूरों को पहली बार जीवित देखा गया, जिसके माध्यम से हवा, भोजन, पानी और बिजली पहुंचाई गई थी.

उन सभी मज़दूरों को 28 नवंबर को सुरक्षित बचा लिया गया.

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गलत दावे से शेयर की जा रही पोस्ट का स्क्रीनशॉट, 28 नवंबर 2023

तस्वीर को इसी दावे के साथ फ़ेसबुक पर यहां, यहां और X पर यहां शेयर किया गया है.

पोस्ट पर यूज़र्स के कमेंट्स से प्रतीत होता है कि वे इस दावे पर यकीन कर रहे हैं.

एक यूज़र ने लिखा, “कम से कम इस बुज़ुर्ग मज़दूर पर तो रहम करो और बयानबाजी बंद करके मज़दूरों को बचाने के लिए ठोस कदम उठाओ."

एक अन्य ने लिखा, "अगर कोई मंत्री इस सुरंग के अंदर फंसा होता तो एक दिन में बाहर आ जाता, लेकिन इस बूढ़े मज़दूर की जान की कोई कीमत नहीं है."

पुरानी तस्वीर

हालांकि,रेस्क्यू अभियान का नेतृत्व करने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL) के एक अधिकारी कर्नल दीपक पाटिल ने 28 नवंबर को एएफ़पी को बताया: "हमने किसी भी मज़दूर की ऐसी कोई तस्वीर जारी नहीं की है, यह दावा पूरी तरह से गलत है."

उत्तराखंड पुलिस ने भी 28 नवंबर, 2023 को अपने आधिकारिक फ़ेसबुक पेज पर इस दावे का खंडन किया (आर्काइव्ड लिंक).

पोस्ट में उसी मज़दूर की एक धुंधली की गयी तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा है: "सिल्क्यारा टनल में ऐसा कोई भी मजदूर नहीं फंसा है। कृपया इसे शेयर करके दुष्प्रचार न करें। ऐसी भ्रामक खबरों को फैलाने वालों के विरूद्ध कठोर वैधानिक कार्यवाही की जाएगी."

उत्तराखंड के राज्य आपदा सुरक्षा बल द्वारा जारी ध्वस्त सुरंग के अंदर फंसे मज़दूरों के एक वीडियो में भी वह बूढ़ा आदमी कहीं नहीं दिख रहा है (आर्काइव्ड लिंक).

बाद में 29 नवंबर को एएफ़पी द्वारा प्रकाशित वीडियो में भी वह व्यक्ति नहीं दिखता है जिसमें बचाए गए मज़दूरों का अधिकारियों द्वारा स्वागत किया जा रहा है ( आर्काइव्ड लिंक).

तस्वीर को कुछ कीवर्ड्स के साथ गूगल रिवर्स इमेज सर्च करने पर हमें पता चला कि वही तस्वीर सिल्कयारा सुरंग हादसे से कम से कम चार साल पहले से सोशल मीडिया पर शेयर हो रही थी.

इसे 2 मई, 2019 को फ़ारसी भाषा के फ़ेसबुक पोस्ट पर अपलोड किया गया था. यही तस्वीर सुरंग ढहने से महीनों पहले 2020, 2022 और अप्रैल 2023 में भी अलग अलग फ़ेसबुक पोस्ट्स में शेयर की गई थी (आर्काइव्ड लिंक यहां, यहां, यहां और यहां).

एएफ़पी तस्वीर में दिख रहे व्यक्ति की पहचान या उस स्थान की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका.

नीचे गलत दावे की पोस्ट में शेयर की गई तस्वीर (बाएं) और 2019 में फ़ेसबुक पर शेयर की गई तस्वीर (दाएं) के स्क्रीनशॉट की तुलना है.

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गलत दावे की पोस्ट में शेयर की गई तस्वीर (बाएं) और 2019 में फ़ेसबुक पर शेयर की गई तस्वीर (दाएं) के स्क्रीनशॉट की तुलना
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