वाराणसी में साधुओं पर लाठीचार्ज का पुराना वीडियो गलत दावे से शेयर किया गया
- यह आर्टिकल एक साल से अधिक पुराना है.
- प्रकाशित 16 जनवरी 2024, 13h26
- 4 मिनट
- द्वारा Devesh MISHRA, एफप भारत
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वीडियो को फ़ेसबुक पर यहां 3 जनवरी 2024 को शेयर किया गया है.
पोस्ट का कैप्शन है, "30 साल पहले जब मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सत्ता में थी, तब राम भक्तों और वर्तमान शंकराचार्य जी की विवेकहीन पिटाई का दृश्य सामने आया था. हिंदुओं को पता होना चाहिए कि वोट कितना महत्वपूर्ण है."
लगभग 2 मिनट 6 सेकेंड लम्बे इस वीडियो में कुछ पुलिसकर्मी भगवा वस्त्र पहने एक साधु और अन्य कई लोगों को बुरी तरह पीटते नज़र आ रहे हैं.
ज्ञात हो कि 90 के दशक में भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाये जाने की मांग को लेकर जन समर्थन हेतु देशव्यापी रथयात्रा निकाली थी. वर्ष 1992 में हिंदुओं की एक उग्र भीड़ ने बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया था जिसके बाद फैले साम्प्रदायिक दंगों में 2000 लोग मारे गये थे, जिसमें अधिकतर मुस्लिम थे.
1990 में एक उग्र भीड़, जो कि बाबरी मस्जिद को गिराने के लिये आगे बढ़ रही थी, को नियंत्रित करने के लिये तत्कालीन जनता पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने गोली चलाने का आदेश दिया था (आर्काइव्ड लिंक).
कई सालों से भारतीय जनता पार्टी के मुख्य चुनावी मुद्दों में शामिल राम मंदिर का उद्घाटन जनवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं.
वीडियो को इसी दावे के साथ फ़ेसबुक पर यहां, यहां और X पर यहां शेयर किया गया है.
वाराणसी में लाठीचार्ज
यूट्यूब पर कीवर्ड सर्च करने पर हमें टीवी चैनल न्यूज़ 24 के वेरिफ़ाइड चैनल पर 23 सितंबर 2015 को प्रकाशित उसी वीडियो का एक लंबा संस्करण मिला (आर्काइव्ड लिंक).
रिपोर्ट के अनुसार वाराणसी में गंगा नदी में मूर्ति विसर्जन को अड़े संतों के एक समूह को हटाने के लिये पुलिस ने लाठीचार्ज किया था.
इसकी हेडलाइन में लिखा है: "वाराणसी पुलिस ने गणेश प्रतिमा विसर्जित करने की कोशिश कर रहे भक्तों पर लाठीचार्ज किया.”
2015 में, अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे जबकि गलत दावे की पोस्ट के अनुसार वीडियो तब फ़िल्माया गया था जब उनके पिता मुलायम सिंह सत्ता में थे (आर्काइव्ड लिंक).
नीचे गलत दावे की पोस्ट के वीडियो (बाएं) और न्यूज़ 24 के यूट्यूब वीडियो (दाएं) के स्क्रीनशॉट की तुलना दी गई है.
यही वीडियो अन्य समाचार चैनलों द्वारा भी यहां और यहां प्रकाशित किया गया है (आर्काइव्ड लिंक यहां और यहां)
वाराणसी में उसी घटना का एक बेहतर फ़ुटेज 23 सितंबर, 2015 को समाचार चैनल आज तक के वेरिफ़ाइड यूट्यूब चैनल पर प्रकाशित किया गया था (आर्काइव्ड लिंक).
इसकी हेडलाइन में लिखा है, "वाराणसी पुलिस ने गंगा में गणेश प्रतिमा विसर्जित कर रहे तीर्थयात्रियों पर लाठीचार्ज किया."
रिपोर्ट की शुरुआत में एंकर को यह कहते हुए सुना जा सकता है, "वाराणसी में उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, ज़िला प्रशासन ने गंगा नदी में धार्मिक मूर्तियों के विसर्जन पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन संतों का एक समूह इस पर अड़ा हुआ था कि उन्हें मूर्ति को नदी में ही विसर्जित करना है, तो पुलिस ने उन्हें रोकने के प्रयास में लाठीचार्ज किया.'
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, ज़िला प्रशासन ने एक स्थानीय तालाब - लक्ष्मी कुंड - में मूर्तियों के विसर्जन की व्यवस्था की थी, लेकिन कुछ हिंदू धार्मिक नेताओं ने मूर्तियों को गंगा नदी में विसर्जित करने पर ही ज़ोर दिया और इसकी मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन पर बैठ गये (आर्काइव्ड लिंक).
नीचे गलत दावे की पोस्ट के वीडियो (बाएं) और आजतक के यूट्यूब वीडियो (दाएं) के स्क्रीनशॉट की तुलना दी गई है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक लाठीचार्ज की यह घटना वाराणसी के गोदौलिया चौराहे पर हुई थी.
आजतक यूट्यूब वीडियो के एक मिनट, 22 सेकंड के मार्क पर, मदनपुरा रोड पर स्थित बाटा शोरूम का एक साइनबोर्ड देखा जा सकता है, जैसा कि यहां गूगल स्ट्रीट व्यू पर देखा जा सकता है.
नीचे आजतक के वीडियो (बाएं) और गूगल स्ट्रीट व्यू (दाएं) पर उसी स्थान के स्क्रीनशॉट की तुलना है.
राम मंदिर से जुड़ी अन्य गलत सूचनाओं को AFP ने यहां, यहां फ़ैक्ट-चेक किया है.