सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा ये वीडियो बांग्लादेश में "हिंदुओं पर हमला" नहीं दिखाता
- प्रकाशित 18 दिसंबर 2024, 13h31
- 3 मिनट
- द्वारा Akshita KUMARI, एफप भारत
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वीडियो को फ़ेसबुक पर 2 दिसंबर 2024 को शेयर करते हुए लिखा गया, "कल बांग्लादेश में मुसलमानों ने कालीबाड़ी यानी काली मंदिर पर हमला करके माता काली और तमाम हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों को नष्ट कर दिया. मंदिर के अंदर मौजूद हिंदू भक्तों को मारा गया. 20 से ज्यादा हिंदू भक्त बुरी तरह घायल है. लेकिन पूरी दुनिया बांग्लादेश में हिंदुओं के कत्लेआम पर खामोश है."
फ़ेसबुक यूज़र द्वारा शेयर किया गया वीडियो पुरुषों के एक समूह को काली की मूर्ति तोड़ते हुए दिखाता है.
हिंदू धर्म में काली को मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी माना गया है (आर्काइव्ड लिंक).
बांग्लादेश की अपदस्थ नेता शेख हसीना की सरकार को अगस्त में गिराए जाने के बाद से देश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हिंसात्मक हमलों के कई मामले सामने आये हैं. इसी बीच यह वीडियो मिलते-जुलते गलत दावों के साथ फ़ेसबुक पर यहां और X पर यहां शेयर किया जा रहा है.
हालांकि पोस्ट में किये गए दावे से मिलती-जुलती घटना -- काली मंदिर में हिंदू भक्तों पर हमला -- पर कोई आधिकारिक रिपोर्ट एएफ़पी को नहीं मिली.
पश्चिम बंगाल की परंपरा
वीडियो को रिवर्स इमेज और कीवर्ड सर्च करने से पता चलता है कि इसे भारत में फ़िल्माया गया है, न कि बांग्लादेश में, जैसा ऑनलाइन पोस्ट में दावा किया गया है.
इसी दृश्य का दूसरे कोण से लिया गया एक लंबा फ़ुटेज 27 नवंबर को फ़ेसबुक पर शेयर किया गया था (आर्काइव्ड लिंक).
बंगाली भाषा का कैप्शन है, "12 साल बाद सुल्तानपुर किरणमयी पाठागर, मां काली प्रतिमा निरंजन."
नीचे गलत दावे की पोस्ट में शेयर की गई क्लिप (बाएं) और फ़ेसबुक पोस्ट में शेयर किये गए लम्बे फ़ुटेज (दाएं) की तुलना का स्क्रीनशॉट दिया गया है.
एएफ़पी ने सुल्तानपुर के काली मंदिर की गूगल मैप्स पर जियोटैग की गई तस्वीरों की लंबे फ़ुटेज में दिख रहे मंदिर से तुलना करके स्थान की पुष्टि की (आर्काइव्ड लिंक).
नीचे फ़ुटेज के दृश्यों (बाएं) और जियोटैग की गई तस्वीरों (दाएं) के स्क्रीनशॉट्स की तुलना है, जिसमें एएफ़पी द्वारा समानताओं को हाइलाइट किया गया है.
काली मूर्ति विसर्जन कार्यक्रम का आयोजन करने वाले स्थानीय सुल्तानपुर किरणमयी पाठागर क्लब के सदस्य देबाशीष मंडल ने वीडियो को सांप्रदायिक हिंसा के रूप में चित्रित करने वाले दावों का खंडन किया.
मंडल ने एएफ़पी को बताया, "मूर्ति विसर्जन एक स्थापित परंपरा है जो हर 12 साल के बाद होती है जिसमें हज़ारों लोग भाग लेते हैं. इसमें किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई थी."
उन्होंने बताया, "काली की मूर्ति को कई टुकड़ों में तोड़ने के बाद पानी में विसर्जित कर दिया जाता है."
बंगाली भाषा के अखबार दैनिक स्टेट्समैन में 21 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन पर रिपोर्ट की गयी थी जिसमें फ़ुटेज में दिख रहे पृष्ठभूमि के समान पृष्ठभूमि वाली देवी काली की मूर्ति दिखाई देती है (आर्काइव्ड लिंक).