
वकीलों की रैली का फ़ुटेज वक़्फ़ संशोधन बिल प्रोटेस्ट के गलत दावे से वायरल
- प्रकाशित 22 अप्रैल 2025, 10h16
- 4 मिनट
- द्वारा Akshita KUMARI, एफप भारत
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सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक पर 5 अप्रैल, 2025 को एक वीडियो शेयर किया गया.
वीडियो का कैप्शन है, "वक्फ बोर्ड बिल के खिलाफ़ वकीलों ने सड़क जाम कर भारी तादाद में प्रोटेस्ट कर रहे हैं!! वकीलों का नारा,सांसद के दम पर तानाशाही नहीं चलेगी अपना काला कानून वापस लो."
धुंधली क्लिप में वकीलों को "कानून वापस लेने" के नारे लगाते देखा जा सकता है.

गलत दावे की पोस्ट की क्लिप को फ़ेसबुक के साथ-साथ X और इंस्टाग्राम पर भी शेयर किया गया.
भारत की संसद द्वारा वक़्फ़ संशोधन बिल पारित किए जाने के बाद इसे व्यापक रूप से शेयर किया गया, जिसके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का तर्क है कि इस बिल का उद्देश्य वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना और इसका दुरुपयोग रोकना है (आर्काइव्ड लिंक).
साल 2022 के आंकड़े के अनुसार वक़्फ़ बोर्ड के पास करीब 9 लाख 40 हज़ार एकड़ में फैली करीब 8 लाख 72 हज़ार 321 अचल संपत्तियां हैं, जिनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये बताई जा रही है जो इन्हें सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी बनाता है.
न्यूज़ रिपोर्ट्स ने बताया कि विधेयक पारित होने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए. विपक्षी दलों ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों की कीमत पर "ध्रुवीकरण की राजनीति" को आगे बढ़ाने के लिए सरकार की आलोचना की है (आर्काइव्ड लिंक).
हालांकि क्लिप में किसी अन्य विधेयक के खिलाफ़ वकीलों का विरोध प्रदर्शन दिखाया गया है.
असंबंधित विरोध प्रदर्शन
गलत दावे से शेयर किए गए वीडियो के कीफ़्रेम को गूगल रिवर्स सर्च करने पर 22 फ़रवरी, 2025 को HNP न्यूज़ के यूट्यूब चैनल पर प्रकाशित उसी वीडियो का लम्बा संस्करण मिला (आर्काइव्ड लिंक).
वीडियो का कैप्शन है, "लाखों वकीलों ने दिल्ली की सड़कें जाम कर दी? ये देख मोदी सरकार के होश उड़ गए! जल्दी देखिए."
फ़ुटेज के 1:36 टाइमस्टैम्प के बाद बिल्कुल वही दृश्य देखे जा सकते हैं.
वीडियो में वकीलों के हाथ में पोस्टर दिखाई दे रहे हैं, जिन पर लिखा है, "तानाशाही नहीं चलेगी" और "वकील (संशोधन) विधेयक 2025 वापस लो". लोगों को यह नारा लगाते हुए भी सुना जा सकता है, "सरकार को यह काला कानून वापस लेना होगा."


रैली में मौजूद तीस हजारी ज़िला न्यायालय के पूर्व प्रमुख नितिन अहलावत ने एएफ़पी को बताया कि यह विरोध प्रदर्शन अधिवक्ता अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ़ किया गया था और इसका वक़्फ़ बिल के प्रदर्शनों से कोई लेना-देना नहीं है.
न्यूज़ वेबसाइट द हिंदू ने भी 18 फ़रवरी को विरोध प्रदर्शनों को रिपोर्ट किया था (आर्काइव्ड लिंक).
विधि एवं न्याय मंत्रालय ने कहा कि संशोधन कानूनी पेशे को नियमित करने, मुवक्किलों के हितों की रक्षा करने और अधिवक्ताओं के पेशेवर मानकों को बढ़ाने के लिए पेश किया गया था (आर्काइव्ड लिंक).
लेकिन सरकार ने 22 फ़रवरी को घोषणा की कि वह वकीलों की आलोचना के बाद इस विधेयक को वापस ले रही है. वकीलों का मानना है कि एडवोकेट एक्ट 1961 में बदलाव उनके अधिकारों और स्वतंत्रता पर असर डाल सकते हैं (आर्काइव्ड लिंक).
एएफ़पी ने वक़्फ़ बिल से संबंधित अन्य गलत दावों को यहां फ़ैक्ट चेक किया है.
