'दुख्तरे हिंदुस्तान, निलामे दो दीनार' नाम की कोई मीनार नहीं, इतिहासकारों ने ख़ारिज़ किया फ़र्ज़ी दावा

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  • प्रकाशित 13 दिसंबर 2021, 05h55
  • अपडेटेड 13 दिसंबर 2021, 07h42
  • 6 मिनट
  • द्वारा Soma BASU, एफप भारत
सोशल मीडिया पर वायरल एक तस्वीर को इस दावे के साथ शेयर किया गया है कि ये अफ़ग़ानिस्तान के ग़ज़नी शहर के बाहर एक मीनार को दिखाती है, जिसे हिंदू महिलाओं की "सामूहिक नीलामी" की याद में बनाया गया था. तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद अगस्त 2021 में दावा ऑनलाइन फिर से प्रसारित होने लगा. ये दावा झूठा है; इतिहासकारों के अनुसार, ये तस्वीर धार्मिक शिलालेखों के साथ एक मीनार को दिखाती है जिसका महिलाओं की कथित "सामूहिक नीलामी" से कोई संबंध नहीं है.

इस तस्वीर को फ़ेसबुक पर यहां 18 अगस्त 2021 में शेयर किया गया.

पोस्ट में दावा किया गया है कि तस्वीर में एक मीनार नज़र आ रही है जो अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित ग़ज़नी शहर में है.

तस्वीर के साथ फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा है: "ईश्वर की लाठी में आवाज नही होती है! अफगानिस्तान के गजनी मे शहर के बाहर एक बड़ा चौक है, उसमे बने एक चबूतरे पर हिंदू औरतो की नीलामी हुई थी. उस स्थान पर इस याद के लिए आक्रमणकारी मुसलमानों ने एक स्तम्भ बनवाया था, जो आज भी उस नीलामी के याद में अफगानिस्तान में धरोहर के रूप में संजोकर रखा गया है, जिस पर लिखा है -
दुख्तरे हिन्दोस्तान: नीलामे दो दीनार -- अर्थात यहां हिन्दुस्तानी औरते दो-दो दीनार मे नीलाम हुई."

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25 नवंबर, 2021 को ली गई भ्रामक पोस्ट का स्क्रीनशॉट

पोस्ट में आगे और लिखा है: "कभी जिस अफगानिस्तान मे हिन्द की बेटियां दो-दो दीनार में नीलाम की गई थीं, आज उन्हीं पठानों की बहन-बेटियां और बीबियां बिना कोई मोल लूटी जा रही हैं, वो भी तथाकथित इस्लाम के छात्रों (तालिबान) द्वारा. इसी को कहते हैं कि ईश्वर की लाठी में आवाज नही होता है! जय श्री राम".

तस्वीर के नीचे कोने में हिंदी में लिखा है, "दुख्तरे हिंदुस्तान : निलामे दो दीनार [हिंदुत्व का कलंक]".

अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण करने के बाद ये दावा सोशल मीडिया पर फिर से वायरल होने लगा.

इस तस्वीर को ऐसे ही दावे के साथ फ़ेसबुक पर यहां और यहां; और ट्विटर पर यहां और यहां शेयर की गयी.

ऐसे ही दावे कई अन्य भाषाओं में, जैसे की अंग्रेज़ी, मराठी, पंजाबी, में भी शेयर किये गए है.

हालांकि, ये दावा सरासर ग़लत है.

धार्मिक इमारत

गूगल पर रिवर्स इमेज के साथ कुछ मुख्य शब्दों के खोज से बिलकुल ऐसी ही तस्वीर यहां विकिमीडिया कॉमन्स पर मिली.

तस्वीर के कैप्शन में लिखा है, "ग़ज़नी में मीनार".

फ़ेसबुक पोस्ट में शेयर की गयी तस्वीर (बाएं) और विकिमीडिया कॉमन्स पर मिली तस्वीर (दाएं) की तुलना नीचे दी गयी है:

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फ़ेसबुक पोस्ट में शेयर की गयी तस्वीर (बाएं) और विकिमीडिया कॉमन्स मिली तस्वीर (दाएं) की तुलना

कुछ और खोज करने पर इसी मीनार जैसी दिखती एक तस्वीर Alamy नाम की फ़ोटो स्टॉक एजेंसी की वेबसाइट पर मिली.

Alamy पर मौजूद इस तस्वीर को फ़ोटोग्राफर जेन स्वीनी ने खींचा था. इस तस्वीर का कैप्शन लिखा है: "बहराम शाह की मीनार - सुल्तान मास उद III और बहराम शाह द्वारा बनाई गई, कुफ़िक और नोशकी लिपि दिखाती दो मीनारों में से एक, जिससे जम की मीनार प्रेरित थी. माना जाता है कि यह मीनारें मूल रूप से ग़ज़नी (अफ़ग़ानिस्तान, एशिया) की मस्जिदों का हिस्सा थी".

Alamy पर मौजूद बहराम शाह मीनार की तस्वीर का स्क्रीनशॉट नीचे देख सकतें है:

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Alamy पर मौजूद बहराम शाह की मीनार की तस्वीर का स्क्रीनशॉट

बहरम शाह 12वीं शताब्दी का शासक था जिसने यह मीनार बनवायी थी.

इतिहासकार वायोला एलेग्रांज़ी उस समय के अफ़ग़ानी स्मारकों में विशेषज्ञता रखतीं है. उन्होनें भी AFP को बताया कि सोशल मीडिया पर ग़लत दावे के साथ फैल रही तस्वीर बहरम शाह की मीनार की है.

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ये मीनार ग़ज़नी में हिन्दू महिलाओं की नीलामी की याद में बिलकुल नहीं बनवायी गयी थी.

एलेग्रांज़ी ने AFP को बताया: “ग़ज़नी में गजनवीद और घुरिद काल (10 वीं शताब्दी के अंत से 13 वीं शताब्दी की शुरुआत तक) की बस कुछ ही ऐतिहासिक स्मारक बचें है और उनमें से कोई भी महिलाओं की नीलामी का जश्न मनाने के लिए नहीं बनाये गये थे.

"उस समय के सुल्तान और अभिजात वर्ग द्वारा प्रायोजित स्मारकों को शाही दरबार (महलों और औपचारिक उद्यानों), धार्मिक भवनों (मस्जिदों, मदरसों, मकबरों) और निजी निवास के लिए बनाया गया था."

अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर और दक्षिण एशिया के इतिहासकार मन्नान अहमद ने भी पुष्टि की कि ये मीनार 'बहराम शाह की मीनार' के नाम से जानी जाती है, न कि 'दुख्तरे हिन्दोस्तान: नीलामे दो दीनार'.

मन्नान अहमद ने AFP को बताया, "मैं पुष्टि कर सकता हूं कि "हिंदू" महिलाओं की नीलामी का जश्न मनाने के लिए कोई ऐसी इमारत नहीं बनाई गई थी और न ही ऐसा कोई शिलालेख मौजूद हैं जिसपर लिखा हो, 'दुख्तरे हिन्दोस्तान: नीलामे दो दीनार'. यह पोस्ट बिलकुल फ़र्जी है".

एलेग्रांज़ी ने ये भी बताया कि इन मीनारों (बहराम शाह और मसूद III की मीनारें) की व्याख्या बहुत पहले "विजय स्तम्भ" के रूप में की गई थी -- तत्कालीन भारत में ग़ज़नविद सल्तनत के आगमन का जश्न मनाते हुए - लेकिन बाद में पाया गया कि ये मीनारें मस्जिदों का हिस्सा थी. उनके आस पास बनी मस्जिदें मिट्टी की थी और समय के साथ टिक नहीं सकीं. मीनारों को अलग तरीक़े से बनाने के कारण वो अब भी हैं.

इस्लामी अभिलेख

मीनार पर कथित शिलालेख, 'दुख्तरे हिन्दोस्तान: नीलामे दो दीनार' के दावे को ख़ारिज करते हुए एलेग्रांज़ी ने कहा, “ये मीनार पर लिखे शब्दों या वाक्यों का बिलकुल ही गलत और फ़र्ज़ी अनुवाद है. मीनार के अभिलेख अरबी भाषा में ग़ज़नवीद सुल्तान बहराम शाह का नाम और उपाधियां है".

एलेग्रांज़ी ने AFP को 1953 में फ्रांसीसी विद्वान जेनाइन सॉर्डेल-थोमिन द्वारा ग़ज़नी मीनारों के अभिलेखों पर प्रकाशित किये गए रिसर्च रिपोर्ट की प्रतिलिपि भी दी.

सॉर्डेल-थोमिन के शोध पत्र के अनुसार, बहराम शाह मीनार के पैनल पर पाये गए अभिलेख का अनुवाद है, "भगवान के नाम पर, दयालु : महान सुल्तान, इस्लाम का राजा, राज्य का दाहिना हाथ, राष्ट्र रक्षक, अबू अल मौजफ्फ़र बहरामशाह".

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1953 में प्रकाशित सॉर्डेल-थोमिन के शोध पत्र के पृष्ठ 116 पर मिले अरबी में शिलालेख का विवरण ( http://www.jstor.org/stable/4196664 / )

मीनार पर भारतीय या हिन्दू महिलाओं की तथाकथित "नीलामी" का कोई ज़िक्र नहीं है.

वायरल मनगढ़ंत दावा

AFP ने पाया कि हिंदी में भ्रामक पोस्ट का सबसे पहला संस्करण 15 सितंबर, 2015 को यहां हिंदी भाषा के समाचार पत्र नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था. ये किसी पत्रकार द्वारा नहीं, बल्कि किसी पाठक द्वारा स्व-प्रकाशित कंटेंट है.

भारतीय जनता पार्टी से जुड़े नेताओं द्वारा ऐसे ही फ़र्ज़ी पोस्ट अलग-अलग रूप में यहां और यहां शेयर किये गए है.

AFP ने पहले भी अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के बारे में ग़लत दावों को यहां, यहां और यहां फ़ैक्ट-चेक किया है.

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